सुप्रीम कोर्ट ने माना कि बाबरी मस्जिद गिराना जुर्म था तो दोषियों को सज़ा क्यों नहीं: जमाअत इस्लामी हिन्द
नई दिल्ली, 3 दिसंबर | “हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं मगर संतुष्ट नहीं हैं. जब ख़ुद सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सारे तथ्य आप के पक्ष में गिनाए जाते हों मगर फैसला दुसरे पक्ष में आए तो इस फैसले को राजनीतिक फैसला कहना ही उचित होगा. इस फैसले को ‘न्याय’ कैसे कहा जा सकता? अगर बाबरी मस्जिद का फैसला किसी की हार है तो वो देश के न्याय व्यवस्था की हार है.” उक्त बातें जमाअत इस्लामी हिन्द के राष्ट्रीय सचिव मलिक मोतसिम ख़ान ने दिल्ली स्थित जमाअत इस्लामी हिन्द के राष्ट्रीय कार्यालय में मंगलवार को हुए प्रेस वार्ता में कही.
इस पत्रकार वार्ता में जमाअत इस्लामी हिन्द के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष इं०मोहम्मद सलीम, राष्ट्रीय सचिव मलिक मोतसिम ख़ान, जमाअत इस्लामी हिन्द की महिला विभाग की सचिव अतिया सिद्दीक़ा, सह सचिव- रहमतुन्निसा और मीडिया विभाग के सचिव अरशद शेख़ उपस्थित रहे.
जमाअत ने मंगलवार को आयोजित इस प्रेस वार्ता में बाबरी मस्जिद फैसला, एनआरसी, JNU फ़ीस वृद्धि और हैद्राबाद में महिला पशु चिकत्सक के दुष्कर्म-हत्या के मुद्दे पर बात रखी गयी.
जमाअत इस्लामी हिन्द के राष्ट्रीय सचिव मलिक मोतसिम ख़ान ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा, “बाबरी मस्जिद पर सुप्रीम कोर्ट के 9 नवंबर के फैसले के बाद दुनिया भर में हमारी निंदा हो रही है. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला तो सुनाया है मगर न्याय नहीं मिला. कोर्ट ने स्वयं फैसले में जिन तथ्यों को स्वीकार किया है वो मस्जिद के पक्ष में जाते हैं मगर फैसला मस्जिद के पक्ष में नहीं आया.”
उन्होंने कहा, “सुप्रीम कोर्ट ये स्वीकार करता है कि मस्जिद गिराना एक बड़ी गलती थी तो दोषियों को सज़ा क्यों नहीं दी गयी? हमारी पहले भी ये मांग रही है और अब भी है कि इस मामले में दोषियों को सज़ा दी जाए.”
जमाअत के सचिव, मलिक ने कहा कि, “हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान तो करते हैं मगर फैसले से संतुष्ट नहीं हैं.” साथ ही ये भी कहा, “ये फैसला अगर किसी की हार है तो वो देश के न्याय व्यवस्था की हार है.”
मलिक मोतसिम ख़ान ने फैसले के बाद मुस्लिम समाज और उनके युवाओं के धैर्य की सराहना करते हुए कहा, “हम मुस्लिम समाज और ख़ासकर कि युवाओं के धैर्य की प्रशंसा करते हैं उन्होंने इस ममले में संयम दिखाया और शांति बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया मगर मुसलमानों को इस बात का दर्द और दुख है कि फैसला इंसाफ नहीं दे सका.”
हैद्राबाद में महिला पशु चिकित्सक के साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटना पर दुख व रोष प्रकट करते हुए जमाअत इस्लामी हिन्द के महिला विभाग की सचिव अतिया सिद्दीक़ा ने प्रेस को संबोधित करते हुए कहा, “आरोपियों को जल्द से जल्द सज़ा दी जाए. 2012 में निर्भया मामले में देशभर में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध और दुष्कर्म जैसे मामलों पर बहस हुई थी और इसकी रोकथाम के लिए कनून बनाए गए थे. जिसमें जुवेनाईल मामले में उम्र कम की गई थी और फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित किए गए थे. मगर आज तक महिला अपराधों में कोई कमी नहीं हो सकी बल्कि महिलाओं के साथ हिंसा के मामले और बढ़े हैं.”
उन्होंने एनसीआरबी का हवाला देते हुए बताया कि अब भी महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं. आगे कहा कि, “राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार 2017 में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के 3.59 लाख मामले और दुष्कर्म के 32,559 दर्ज हुए. इन आंकड़ों से ये बात स्पष्ट होती है कि देश में हर घंटे में 4 महिलाओं के साथ बलात्कार और हर 3 मिनट में 2 महिलाओं के साथ बद सलूकी की जाती है. उहोने कहा कि अपराधियों पकड़ की जाए और उन्हें सख्त सज़ा दी जाए. उन्होंने कहा कि जमाअत इस ममले में जस्टिस वर्मा कमेटी के सुझाव का समर्थन करती है.”
एक सवाल के जवाब में जमाअत इस्लामी हिन्द की महिला विभाग की सह सचिव, रहमतुन्निसा ने कहा, “हैद्राबाद और दुसरे अन्य स्थानों पर महिलाओं के साथ दुष्कर्म व हिंसा की घटनाएं हमें ये सोचने पर मजबूर करती हैं कि आखिर समाज का महिलाओं के प्रति कैसा रवैया है और ये भी कि कौन से कारण इनके पीछे ज़िम्मेदार हैं.”
उन्होंने हैद्राबाद की घटना का उल्लेख करते हुए कहा, “ख़बरों के माध्यम से हम तक ये बात पहुंची है कि आरोपियों ने पहले महिला को ज़बरदस्ती शराब पिलाया और फिर घटना को अंजाम दिया. हम सभी को और पत्रकारों को भी इस शराब के मुद्दे पर भी फोकस करना चाहिए और अपराधों में कमी के लिए इसपर भी आवाज़ उठाना चाहिए.”
मीडिया सचिव अरशद शेख़ ने जवाहरलाल नेहरु विश्विद्यालय (JNU) की बढ़ी हुई फीस के मुद्दे पर कहा, “JNU छात्रों द्वारा फीस वृद्धि के मुद्दे को लेकर किए गए प्रदर्शन पर दिल्ली पुलिस द्वारा लाठी चार्ज की जमाअत निंदा करती है. जेएनयू में फीस के मुद्दे पर पिछले एक महीने से छात्रों का प्रदर्शन जारी है और इसपर सरकार को इनकी मांगों को गंभीरता से लेना चाहिए. हम JNU छात्रों की इस मांग का समर्थन करते हैं.”
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